सरयू मन मा मुस्काय रहीं


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सरयू तट शीश धरे कलशा
सब नारिहिं हैं बतियाय रहीं।
प्रभु राम व तीनिहुँ भायन के
हँसि के सब हाल सुनाय रहीं।
सुनि बात सबै पनिहारिन की
सरयू मन मा मुस्काय रहीं।
प्रभु के स्पर्श की चाह लिये
सबके कलशा मा समाय रहीं।

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