सफेदी बाल पर गाल पर झुर्रियां
खिल रहीं सूरते हाल पर झुर्रियां
इक तिजोरी तजुर्बों की समझो इन्हें
ब्याज हैं मूल के माल पर झुर्रियां
जिंदगी के जुलम सब बयां कर रहीं
हैं इबारत सी दीवाल पर झुर्रियां
नाती-पोतों के संग खिलखिलाती हुई
नाचती उनकी हर ताल पर झुर्रियां
दीजिए प्यार सत्कार इनको सदा
लुटा देंगी दुआ थाल भर झुर्रियां
काटते हम वही जो हैं बोते कभी
रख रही हैं नज़र काल पर झुर्रियां
– ओमप्रकाश तिवारी