मौन के हथियार से

जीतिए दिल दुश्मनों का आप अपने प्यार से,
बोलने वालों से लड़िए मौन के हथियार से।
हो जहाँ नाकाम लश्कर भी सिकंदर वीर का,
जंग जीती हैं गई इक तबस्सुम की मार से ।
पीढ़ियों से धधकती ज्वाला भी बुझती है मियाँ,
आपके मीठे वचन की एक मस्त फुहार से।
जंग जीतो इस तरह कि राज सबके दिल पे हो,
बच के रहना पर हमेशा निज नजर की हार से।
वायदों के जाल में मत फांसिए आवाम को,
उससे बेहतर छवि बनेगी आपके इंकार से।
बेहिचक लड़िए झगड़िए साधिए निज स्वार्भ भी,
दीजिए तरजीह पर कर्तव्य को अधिकार से।

– ओमप्रकाश तिवारी