चिट्ठी


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दिल्ली वाले हैं बहुत भोले भाले लोग,
तभी चल रहा जेल से भाई का उद्योग।
भाई का उद्योग रोज भिजवाए चिट्ठी,
भले हुई गुम दीख रही है सिट्टी-पिट्टी।

जिनको समझे आप देव वो दिल के काले,
अब तो समझें काश! उन्हें ये दिल्ली वाले!!
– ओमप्रकाश तिवारी 

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