एक प्रार्थना

हे प्रभू वह मति प्रसारो
सब करें कल्याण सबका।
करि कृपा सारे जगत को
दीजिए वह चेतना,
कर सकें महसूस हम सब
हर किसी की वेदना;
प्रेम का विस्तार हो
इस स्वार्थी संसार में,
दो मनुष्यों बीच
किंचित मात्र भी हो भेद ना।
हाथ इक – दूजे का थामे
साथ हो उत्थान सबका।
देश का शासन – प्रशासन
रहनुमा – नेता सभी,
बुद्धिजीवी-कवि-विचारक
और अध्येता सभी;
बुद्धि निर्मल हो सभी की
शुद्ध चिंतन में लगें,
मत भटकने दीजिए
इस वर्ग की नीयत कभी।
हों अहं से दूर सारे
सब करें सम्मान सबका।
याद हो आठों प्रहर
हर पल हमें कर्तव्य अपना,
फिर भले संघर्ष की
ज्वाला में क्यों ना पड़े तपना;
हम कमर कस कर खड़े हों
हौसला नभ को छुए,
राष्ट्र को स्वर्णिम बनाने का
करें हम पूर्ण सपना।
हर स्वचिंतन बीच हो प्रभु
देश पर भी ध्यान सबका।

– ओमप्रकाश तिवारी